जितिया व्रत: मातृत्व प्रेम का एक अनोखा प्रतीक
जितिया व्रत (Jitiya Vrat) मां का प्रेम सारे प्रेम से ऊपर :- भारत में जितिया व्रत मनाए जाने वाले कठिनतम व्रतों में से एक है, जो मातृत्व प्रेम में एक माँ अपने बच्चो की लंबी उम्र के लिए किया जाता है। इस व्रत को जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है। माताएं इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं, जिसमें पूरे दिन जल का भी सेवन नहीं किया जाता। यह व्रत माताओं द्वारा अपनी संतान की लंबी आयु, स्वस्थ जीवन और सफलता की कामना के लिए किया जाता है। साल 2024 में, जितिया व्रत 25 सितंबर को रखा जा रहा है और 26 सितंबर को व्रत का पारण किया जाएगा।
वृद्धाश्रम की माताओं का अटूट प्रेम
जितिया व्रत माताओं के असीम प्रेम का उदाहरण है, और इस दिन की खासियत यह है कि कई वृद्ध माताएं, जो वृद्धाश्रम में रह रही हैं, अपनी संतान की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। यहां तक कि वे माएं भी, जिन्हें उनके बच्चे वृद्धाश्रम में छोड़ गए हैं, अपनी संतान की सुख-समृद्धि की कामना करते हुए इस कठिन व्रत को करती हैं।
मां का दिल संतान के लिए हमेशा धड़कता है, चाहे वह कितनी ही कठिनाइयों का सामना क्यों न करे। वृद्धाश्रम में रह रही माएं उन बच्चों के लिए भी भगवान से प्रार्थना करती हैं, जिन्होंने उन्हें अकेला छोड़ दिया है। यह मातृत्व प्रेम का ऐसा उदाहरण है, जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है।
मां की खिदमत: एक इबादत
किसी ने खूब कहा है, “दवा असर न करे तो नजर उतारती है, मां है जनाब वो हार कहां मानती है।” मां का प्यार और उसकी देखभाल किसी दुआ से कम नहीं होती। शास्त्रों में मां को ईश्वर से भी ऊंचा स्थान दिया गया है। “मातृ देवो भवः” का सिद्धांत हमें सिखाता है कि मां की सेवा करना किसी इबादत से कम नहीं है।
असलम कोलसरी ने लिखा है, “शहर में आकर पढ़ने वाले भूल गए किस की मां ने कितना जेवर बेचा था।” यह पंक्ति उन बच्चों की कहानी बयां करती है, जो अपनी मां के बलिदानों को भूलकर उनकी अहमियत कम कर देते हैं।
संतान की तिरस्कार के बाद भी मां का व्रत
आज के दौर में, कई बच्चे अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ देते हैं, यह सोचकर कि उनकी जिम्मेदारी खत्म हो गई। लेकिन उन माताओं का दिल कभी नहीं बदलता। भले ही वे वृद्धाश्रम में रह रही हों, उनका प्यार और व्रत संतान के लिए हमेशा बना रहता है। यह देखकर दुख होता है कि जिन माताओं ने अपनी पूरी जिंदगी संतान की देखभाल में लगा दी, उन्हीं को उनकी संतान अकेला छोड़ देती है।
लेकिन मां की ममता अनमोल होती है। वह संतान की हर खुशी और लंबी उम्र के लिए जितिया व्रत जैसे कठिन तप को भी अपनाती है, चाहे उसे खुद कितनी ही कठिनाइयों का सामना करना पड़े। यह ममता का वह रूप है, जो न स्वार्थ देखता है और न ही किसी शर्त पर आधारित होता है।
वृद्धाश्रम में रहकर भी संतान की सलामती की कामना
जितिया व्रत के इस पावन पर्व पर, वृद्धाश्रम में रह रही माताएं भी अपनी संतान के लिए व्रत करती हैं। वे उन बच्चों की भलाई और तरक्की के लिए प्रार्थना करती हैं, जिन्होंने उन्हें वहां छोड़ा है। यह मातृत्व का सबसे पवित्र रूप है, जिसे देख और सुनकर दिल भर आता है।
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मां कभी हार नहीं मानती
चाहे संतान ने जितना भी तिरस्कार क्यों न किया हो, मां की ममता हमेशा संतान के प्रति बनी रहती है। यही वजह है कि हर साल ये माताएं जितिया व्रत करती हैं, अपनी संतान की लंबी उम्र और सफलता की प्रार्थना करती हैं। क्योंकि मां तो मां होती है, वह कभी हार नहीं मानती।
मां का प्यार अनमोल
जितिया व्रत सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, यह मातृत्व प्रेम का जीता-जागता उदाहरण है। वृद्धाश्रम में रह रही माताओं का अपने बच्चों के लिए व्रत रखना हमें यह सिखाता है कि मां का प्यार निःस्वार्थ और अटूट होता है। चाहे कितनी भी कठिनाइयां क्यों न हों, मां की ममता हमेशा अपनी संतान के लिए बनी रहती है। इस पर्व पर हमें यह याद रखना चाहिए कि मां की सेवा और सम्मान करना हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।